نصوص أدبية

تعالي ..لن يمكث ندائي طويلا ً

و صوب ْ .

***

 

مدّدتك ِ قلّصتك ِ

كأنك ِ موجة

الليل

و النهار .

***

 

طوقيني

كأني بقية

من رحيل .

***

 

تذكري

لولا ذلك الوتد

ما قامت ْ

قيامة خيمتك ِ .

*** 

 

كلما منحتك ِ الوتر

زدت ِ

في طنبورك ِ

نغما ً.

***

 

أعترف ُ الآن

فرّقتك ِ تماما ً

حتى أَسود .

***

 

و أعلم ُ

أنك تخرجين مني

على رؤوس

أصابعك .

***

 

لا تُحنّي يديك ِ

أنا لن أفضي

إليك ِ.

***

 

الآن

أختال ُ بين أصابعك ِ

 عاشقاً

لوّنته ُ أظافرك .

***

 

لا

نحن لسنا

على النقيض

نحن النقيض

تماما ً.

***

 

حاوليني

لا الشك شك ٌ

و لا اليقين

يقيني .

***

 

أعترف ُالآن

أفتقدُ فيك ِ

ما يزيدُ عنك ِ.

***

 

أنت ِ

في قمة سؤال ٍ

لن أجيب

عليه .

***

 

أنت ِ

مثل الحقيقة

ما قبلك ِ وهم ٌ

ما بعدك

وهم أيضا ً.

***

 

تملئين  وجهي بكفيك ِ

يزداد رأسي

فكرتين .

***

 

يوماً ما

ستدركين كَم ْ

تصببت ُ

عرقك ِ .

***

 

أجمل ُ

ما في ضمّتي

أنها تأخذ أَلِفي

إلى أعماق 

فتْحتك .

***

 

نعم

أخشى مرورك ِ

على رؤوس

أصابعي .

***

 

حتى

بين مسافاتنا

يولد ُزمن جديد .

***

 

هكذا

كلما جلت ُ فيك ِ

عثرت ِ على

مرادك ِ .

***

 

أرتاد ُ شواطئك ِ

كي أسترد َ

ميلاد عريّي .

***

 

كلما

تهادت ْسفينتك ِ

مددت ُ لها

ياطري .

***

 

أستبقيك ِ

في ملامحي

كأنك ِ وجهي

الأخير .

***

 

نعم ْ

جئتك ِ بعود نعناع ٍ

على غرار

طبيعتك .

***

 

تعالي

لا يعبّر عن صحيحك ِ

إلا

صحيحي .

***

 

تذكري

أنا من كَتبك ِ

بقلم ٍ

لا يلين .

***

 

تظاهري بالظمأ

أنت ِ

اكتفائي .

***

 

أستردّك ِ مني

كلما آن َ

اشتعالي .

***

 

تكاملي

الشيء شيئك ِ

و النوع ُ

نوعي .

***

 

أُقسم الآن

لا يعلو سؤالك ِ

على جوابي .

***

 

أعدك ِ

سأجعلك صمتي

حين تحتفين َ

بصوت ِ الآخرين .

***

 

أبصرك ِ تماما ً

أبصر ُ ما قبلك

و ما بعدك

كأنك عيني َ

الثالثة .

***

 

أصرفك ِ ببساطة

لست ِ

رصيداً لي .

***

 

أقترح ُ الآنَ 

 شمّك ِ

............................

الآراء الواردة في المقال لا تمثل رأي صحيفة المثقف بالضرورة، ويتحمل الكاتب جميع التبعات القانونية المترتبة عليها. (العدد: 1414 الثلاثاء 25/05/2010)

 

 

 

في نصوص اليوم